आज प्रस्तुत हैं दो मुक्तक डा0 हरिमोहन गुप्त बुधि विवेकयुत शिक्षा ही होती संस्कृति है, निज कर्मो की प्रति-विम्व होती आकृति है l यों तो आवागमन सत्य है इस धरती पर , मरती रहती देह, अमर ही होती कृति है l
सेवा भाव समर्पण ही बस, मानव की पहिचान है, जिसको है सन्तोष हृदय में, सच में वह धनवान है l यों तो मरते,और जन्मते,जो भी आया यहाँ धरा पर, करता जो उपकार सदा ही, पाता वह सम्मान है l
आज प्रस्तुत हैं दो मुक्तक डा0 हरिमोहन गुप्त
ReplyDeleteबुधि विवेकयुत शिक्षा ही होती संस्कृति है,
निज कर्मो की प्रति-विम्व होती आकृति है l
यों तो आवागमन सत्य है इस धरती पर ,
मरती रहती देह, अमर ही होती कृति है l
सेवा भाव समर्पण ही बस, मानव की पहिचान है,
जिसको है सन्तोष हृदय में, सच में वह धनवान है l
यों तो मरते,और जन्मते,जो भी आया यहाँ धरा पर,
करता जो उपकार सदा ही, पाता वह सम्मान है l