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Dr. Harimohan Gupt
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1 comment:

  1. आज प्रस्तुत हैं दो मुक्तक डा0 हरिमोहन गुप्त
    बुधि विवेकयुत शिक्षा ही होती संस्कृति है,
    निज कर्मो की प्रति-विम्व होती आकृति है l
    यों तो आवागमन सत्य है इस धरती पर ,
    मरती रहती देह, अमर ही होती कृति है l

    सेवा भाव समर्पण ही बस, मानव की पहिचान है,
    जिसको है सन्तोष हृदय में, सच में वह धनवान है l
    यों तो मरते,और जन्मते,जो भी आया यहाँ धरा पर,
    करता जो उपकार सदा ही, पाता वह सम्मान है l

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