Tuesday 28 November 2017

जुगनू जैसा है प्रकाश

जुगनू जैसा है प्रकाश बस,
मिटा न तिल भर भी अँधियारा ,
गर्व बढाया मन में इतना,
सूरज को तुमने ललकारा।
        यह गर्वोक्ति न ले लो मन में,
        तुम्हीं बड़े हो सारे जग में,
        यहाँ किसी ने भी नापी थी,
        सारी धरती को इक पल में।
इसीलिये तुमसे कहता हूँ,
बाँट सको बाँटो उजयारा।
         अंहकार ही था रावण को,
         स्वर्ग नसेनी लगवाउगा,
         मैं त्रैलोक्य जीत कर पल में,
         विजय पताका फहराउगा।
वह रावण भी नहीं रह सका,
सागर तो अब भी है खारा।
           बहुत बड़ा हूँ सागर ने जब,
           अंहकार मन में उपजाया,
           ऋषि अगस्त ने एक घूँट में,
           सोख लिया, उसको समझाया।
           
जग में ऐसे बहुत लोग हैं ,
जिनने बदली युग की धारा।     
           मृत्यु जीतने के ही भ्रम में,
           छै पुत्रों को जिसने मारे,
           नहीं सफल हो पाया फिर भी,
           वह विपत्ति को कैसे टारे।
नहीं कंस रह पाया जग में,
और कृष्ण ने उसे पछाड़ा।
            परोपकार का भाव रहे तो,
            हो जाये ज्योर्तिमय यह जग,
            अंधकार हो दूर जगत से,
            रहे प्रकाशित अब सारा जग।
सूरज ने तम को हरने हित,
जलना ही उसने स्वीकारा।
इसीलिये तुमसे कहता हूँ 
बाँट सको बाँटो उजयारा।

- डॉ. हरिमोहन गुप्त

Tuesday 21 November 2017

योग,यज्ञ,जप,तप

योग,यज्ञ,जप,तप,संकीर्तन,भजन उपासना,
सभी व्यर्थ हैं, त्यागो पाहिले अहं वासना l
अहंकार से विरत मनुज सुख पाता रहता,
तृष्णा ,ममता ,मोह सभी की नहीं चाहना 

- डॉ. हरिमोहन गुप्त 

Saturday 18 November 2017

समय

हों सजग हम,यही सबको बताना है,
करो मजबूत खुद को, यह दिखाना है l
हर समय उत्तम समय आता नहीं है,
समय को ही हमें उत्तम बनाना है l 

- डॉ. हरिमोहन गुप्त 

Saturday 11 November 2017

वक्त पर ही तुम

वक्त पर ही तुम बुरी आदत बदल लो,
नहीं तो बदल जायेगा तुम्हारा वक्त भी l


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- डॉ. हरिमोहन गुप्त

जिनका नहीं बहता पसीना

बनो कर्मठ, यही तो सब बताते हैं,
बढ़े साहस, यही गुरुजन सिखाते हैं l
वक्त पर जिनका नहीं बहता पसीना,
मानिये वे सदा, आँसू बहाते हैं l
- डॉ. हरिमोहन गुप्त

Friday 3 November 2017

योग

ऐश औ आराम  से  जीवन कटे,  यह भोग है,
असंतुलित भोजन करें परिणाम इसका रोग  है l
परमात्मा से मन सहज हम जोड़ कर देखें सही,
स्वस्थ हो तन मन हमारा,बस यही तो योग है l

जीवन  का  यदि सम्यक ढंग से करना है उपयोग,
अल्पाहारी,  संग  में  निद्रा,  करें  आप  उपयोग l
हम शतायु  की  सोचें  मन  में, रहना हमें निरोग,
स्वास्थलाभ संग,मन प्रसन्न हो,नियमित करिये योग l

- Dr. Harimohan Gupt